सोमवार, 3 मार्च 2008

मेरी नि:शक्तता...

मैं तरुण शर्मा, अंध विद्यालय के सत्संग हॉल में खड़ा हूं और सुन रहा हूं चुप की आवाज को बातें करते. ऑकेजन है अनाथ मूक-बधिर किशन (कृष्ण) और अंकिता (रुकमणि) का शादी समारोह. खुशी का माहौल और बहुत से बाराती-घाराती. भीड़-भाड़-चहल-पहल के बीच दोनों खामोश चेहरे कुछ भी सुन पाने मे अक्षम लग रहे हैं, मगर शायद वो समझ रहे हैं इक-दूजे की धड़कनों की बातें. एक बार फिर मैं उस जहां में पहुंच गया, जहां खुद को नि:शक्त महसूस कर रहा था. आज मेरा जन्मदिन भी था और ऐसा CELEBRATION कभी नहीं हुआ और शायद इन फ्यूचर कभी हो भी ना.

2 टिप्‍पणियां:

jangir_rajesh ने कहा…

hi Tarun,
Aap ka blog achchha laga.lage raho niranttar........
Thanks.
jangir rajesh
rajeshj@raj.bhaskarnet.com

बेनामी ने कहा…

Tarun,dil ki awaaz sunnane ke liye zuban ki zarurat hi nahi,khamosh ahsas hi kafi hota hai.Simply loved your work.Vandana.