रविवार, 30 मार्च 2014

हर-हर मोदी से हिल गया कैलाश

विशेष जांच करने पृथ्वी लोक पहुंचे नारद मुनि की एक्सक्लूसिव रपट

सीन-1, कैलाश पर्वत, शिवा इस्टेट
तपस्या में लीन रहने वाले सृष्टि के संघारक भगवान शिव ध्यान की मुद्रा में बैठे हैं, मगर एक शोर है, जो उन्हें एकाग्र नहीं होने दे रहा। हर-हर मोदी... हर-हर मोदी... यह आवाजें आखिर क्यों आ रही हैं? मैं कहां हूं... महादेव कहां हैं? तंद्रा टूटी, जैसे कोई दुस्वप्र देखा हो। 
भगवान शिव सोच रहे हैं : कौन है यह मोदी... मानव है... कोई अवतार तो नहीं? मनुष्य अवतार में कोई देव होता तो मुझे सूचना अवश्य मिल ही जाती है। काश! मैंने हर-हर महादेव का कॉपीराइट करवा लिया होता।
(सोचना जारी है)
"खैर, अब तो उसे बुलाना ही पड़ेगा।"

सीन-2, कैलाश पर्वत, ब्रह्म पुत्र नारद मुनि की एंट्री
नारायण, नारायण... देवों के देव... महादेव की जय हो।
मुझे याद किया प्रभु?
शिव : हां मुनिवर... मानव लोक से कुछ अजीब आवाजें सुनाई दे रही हैं। ऐसा लगता है मानो देवताओं का सिंहासन हिलाने की कोई साजिश रची जा रही हो। 
मुनिवर, आप ही सही रिपोर्ट दे सकते हैं। वहां के चैनलों और मीडिया का क्या भरोसा? आप पृथ्वी लोक जाएं और बताएं की आखिर यह मोदियापा है क्या?

(बता दें कि नारद सृष्टि के रचियता ब्रह्मा के पुत्र है, देव लोक के लिए सूचना एवं जनसंपर्क का काम उन्हीं के जरिए होता है। एक्शन प्लान के लिए टीमें अलग हैं।)

सीन-3, काशी नगरी, नारद मुनि लाइव (कैलाश पर्वत को)
12 ज्योतिर्लिंग में से एक काशी, यहां की रंगत बदली सी है। आसमान से ऐसा लग रहा है, जैसे किसी कैनवास पर लाल-नीले और केसरिया रंग के छींटे मार दिए हों। थोड़ा क्लोज-अप व्यू लिया तो समझ में आया। 
नारद : अरे, यह तो पोस्टर-बैनर हैं। ओह, यहां तो चुनाव हैं। हर पांच साल में होते हैं, मगर इस बार कुछ तो अलग है। 

सीन-4, अस्सी की अड़ी
एक ग्रुप में चाय की चुस्कियों के साथ चुनावी चर्चा जारी है। नारद भी मानव वेश में मौजूद है। 
पहला आदमी : मोदी की हवा तो है भइया, जीत ही जाएगा।
दूसरा : आप तो रहने दो। केजरीवाल देखना टक्कर देगा। 
नारद : यह मोदी बहुत पावरफुल है क्या?
पहला : भइया, कोनो लोक से आए हो, मोदी को नहीं जानते? उसने तो पार्टी के भीष्म को ही साइडलाइन कर दिया। भीष्म क्यों, सभी बुजुर्ग और बागी बाहर हो रहे हैं। उसे रोक पाना असंभव है। अब देख लो, हर-हर महादेव की जगह, हर-हर मोदी हो गए हैं।
दूसरा : हां, देखो तो, जिसका भाषण दीवारों पर खड़े होकर सुनता था, जिससे सियासी पाठ सीखा, उसी को ही किनारे कर दिया। ये तो गलत है। अनुभव की कद्र तो होनी ही चाहिए। 
नारद (सोचते हुए) : ओह, बड़ा खतरनाक मनुष्य है। महादेव की चिंता वाजिब थी। 
नारद : मुझे लगता है ऐसे भगवान की जगह खुद का नाम लगाना गलत है।
पहला : भइया, यहां सही है क्या? अभी दो दिन पहले ही दुर्गा माता से तुलना कर दी है पोस्टर में। नारी मंत्र की जगह मोदी मंत्र भी दे दिया। 
या मोदी सर्वभूतेषु... राष्ट्ररूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: 
नमो नम:...
ये तो चुनावी हथकंडे हैं। वैसे हर-हर मोदी पर तो रोक लग ही गई। चलो अच्छा ही हुआ। 
नारद : मगर यहां निर्वाचन आयोग भी तो है, जो चुनावों में आचार संहिता का पालन कराता है। वो कुछ क्यों नहीं करता? दंड का अधिकार तो उन्हें है ही। 
पहला : बाबू, नए लगते हो यहां... आयोग के खुद के हाथ बंधे हैं। नोटिस दे दिया जाता है बस। पिछली बार वरुण गांधी ने पीलीभीत से भी तो भडक़ाऊ बयान दिया था। का हुआ? सब खेल हो जाते हैं।
दूसरा : अरे, दूर क्यों जाते हो। अभी कांग्रेस वाले भइया इमरान को ही देख लो। बोल वचन किए, अब जेल गए हैं। हीरो तो बन ही गए। बाद में क्या होता है? खैर, महादेव सद्बुद्धि दे सबको।

सीन-5, कैलाश पर्वत, शिवा हाउस
नारद 3 दिन के अपने काशी प्रवास के बाद कैलाश लौटे हैं। अपनी लिखित रपट उन्होंने महादेव को सौंपी है। महादेव उसे ही पढ़ रहे हैं।

महादेव प्रभु

भारतीय राजनीति केे अक्सर चुनावों में उम्मीदवार स्वांग रचते हैं। पांच साल तक कुंभकरणी नींद में सोए रहते हैं। फिर अचानक प्रकट हो जाते हैं। इस सीजन में तो हद ही हो जाती है। यह कभी छलिया बनकर जनता को ठगते हैं तो कभी इमोशनल अत्याचार से। हे दीन बंधु, इसमें गलती इन नेताओं की ही नहीं है, कार्यकर्ताओं की है, जो नंबर बनाने के चक्कर में इतना मक्खन लगाते हैं कि मथुरा में भी चिकनाई कम पड़ जाती है। किसी को नारों में भगवान बना दिया जाता है, तो किसी को पोस्टरों में मां दुर्गा। जिम्मेदार यहां की निरीह जनता की भी है, जो धर्म-जाति-मजहब के नाम पर इनकी चिकनी बातों में आ जाती है और पिछले पांच साल का लेखा-जोखा चंद दिनों में ही भूल जाती है। सब कुछ जानते हुए भी इंसान को भगवान का दर्जा देने में भी गुरेज नहीं करती। प्रभु, इस मायावी लोक में मान-सम्मान की बातें भी गौण हो गई हैं। जीत-हार के इस युद्ध की कोई हद नहीं है। इस सियासी रण में कोई भी उम्मीदवार जीते, मगर हार हमेशा मतदाताओं की ही होती है। हर बार, बार-बार...

आपका,
नारद