मंगलवार, 8 अप्रैल 2008

दर्द बोला तो सुनाई देगा...

मुंह की बात तो सब सुन लेते हैं, दिल का दर्द जाने कौन?
आवाजों के बाजारों में, खामोशी को पहचाने कौन?
8 अप्रैल 2008: मैं आज फिर जुबिन हॉस्पीटल पहुंचा, जमीं पर टिमटिमाते उन तारों की छांव में सुकून तलाशने, जो अक्सर मां की गोद में ही मिलता है. वहां डेढ़ साल की बच्ची का दर्द कुछ ऐसा बोला कि उसकी आवाज अब तलक कानों गूंज रही है. वो स्पास्टिक है....नाम है इशिका. फिजियोथैरेपिस्ट की करवाई एक्सरसाइज़ के दर्द को भले ही वो जुबान से बयां नहीं कर पा रही हो मगर रूंधे गले से निकलने वाली उसकी चीत्कार मुझे हर उस दर्द का अहसास जरूर करवा रही थी, जो शायद मेरे दर्द से कहीं ज्यादा है.
आज अनकहे शब्दों में एक सच भी सुनाई दिया: इशिका की मां ने उसका फोटो देने से मना कर दिया. शायद उन्हें डर था कि मीडियामैन उनकी भावनाओं को कैश न कर लें.