शुक्रवार, 14 मार्च 2008

वो खामोश शब्द...

8 जुलाई 2005 : कुछ नया करने के जुनून में मैं निकल पड़ा उस परिवार को ढूंढने, जो `मुखिया´ की शहादत के बावजूद गुमनामियों के अंधेरों में कहीं खोया था. आंखों में गमों का समंदर, होठों पर पीड़ा और माथे पर चिंता की लकीरें. हाल-ए-बयां था शहीद एएसआई रामधन की पत्नी नानची देवी का, जिन्हें पति की शहादत पर फखर तो है मगर सरकारी बेरुखी का गुस्सा भी चेहरे पर साफ नजर आता था. मैं स्टोरी कंप्लीट कर चुका था। बाकी थी तो सिर्फ नानची देवी की फोटो. फोटोग्राफर को साथ लिए मैं अगले ही दिन शहीद के घर पहुंचा. शहीद की तस्वीर से बात करती उनकी पत्नी. उस दिन मुझे पहली बार सुनाई दिए वो खामोश शब्द, जिन्हें मैं शायद उससे पहले कभी नहीं सुन पाया था.

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