
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008
इक मौन दुआ...

मंगलवार, 8 अप्रैल 2008
दर्द बोला तो सुनाई देगा...
मुंह की बात तो सब सुन लेते हैं, दिल का दर्द जाने कौन?
आवाजों के बाजारों में, खामोशी को पहचाने कौन?

8 अप्रैल 2008: मैं आज फिर जुबिन हॉस्पीटल पहुंचा, जमीं पर टिमटिमाते उन तारों की छांव में सुकून तलाशने, जो अक्सर मां की गोद में ही मिलता है. वहां डेढ़ साल की बच्ची का दर्द कुछ ऐसा बोला कि उसकी आवाज अब तलक कानों गूंज रही है. वो स्पास्टिक है....नाम है इशिका. फिजियोथैरेपिस्ट की करवाई एक्सरसाइज़ के दर्द को भले ही वो जुबान से बयां नहीं कर पा रही हो मगर रूंधे गले से निकलने वाली उसकी चीत्कार मुझे हर उस दर्द का अहसास जरूर करवा रही थी, जो शायद मेरे दर्द से कहीं ज्यादा है.
आज अनकहे शब्दों में एक सच भी सुनाई दिया: इशिका की मां ने उसका फोटो देने से मना कर दिया. शायद उन्हें डर था कि मीडियामैन उनकी भावनाओं को कैश न कर लें.
शुक्रवार, 14 मार्च 2008
अहसास: निरीह के चुप्पी भरे दर्द का...
26 अप्रैल 2005: JOURNALISM का क्रेज और मेरा पहला अनुभव. शुरुआत हुई श्रीगंगानगर के रिड़मलसर के धोरों से. घर पर बिन-बताए मैं निकल पड़ा उस ओर जहां बेजुबान वन्य प्राणियों के प्यास से मारे जाने की सूचना थी. वैशाख मास की दोपहरी में मैं साथी भूपेंद्रसिंह दहेल के ट्रेक्टर पर रिड़मलसर से पांच किलोमीटर आगे बियावान धोरों में पहुंचा. नश्तर की तरह चुभती धूल भरी तेज-गर्म हवाएं मुझे अहसास दिला रहीं थी उन निरीह बेजुबानों के चुप्पी भरे दर्द का.
वो खामोश शब्द...
8 जुलाई 2005 : कुछ नया करने के जुनून में मैं निकल पड़ा उस परिवार को ढूंढने, जो `मुखिया´ की शहादत के बावजूद गुमनामियों के अंधेरों में कहीं खोया था. आंखों में गमों का समंदर, होठों पर पीड़ा और माथे पर चिंता की लकीरें. हाल-ए-बयां था शहीद एएसआई रामधन की पत्नी नानची देवी का, जिन्हें पति की शहादत पर फखर तो है मगर सरकारी बेरुखी का गुस्सा भी चेहरे पर साफ नजर आता था. मैं स्टोरी कंप्लीट कर चुका था। बाकी थी तो सिर्फ नानची देवी की फोटो. फोटोग्राफर को साथ लिए मैं अगले ही दिन शहीद के घर पहुंचा. शहीद की तस्वीर से बात करती उनकी पत्नी. उस दिन मुझे पहली बार सुनाई दिए वो खामोश शब्द, जिन्हें मैं शायद उससे पहले कभी नहीं सुन पाया था.
हौसलों के हाथ-पैर...

यह चौपाई निराकार BRAMHA के लिए लिखी गई है लेकिन लगता है ईमानदार हौसले से मिलने वाली अचूक सफलता में भी इसी BRAMHA का अंश आ जाता है. तभी तो हौसले को हाथ-पैर बनाकर ब्राजील की यह बच्ची आकर्षक नृत्य कर रही है. दृश्य ब्राजील के शहर सॉओ पॉलो में शनिवार को आयोजित सांबा स्कूल परेड का. -एपी
सोमवार, 3 मार्च 2008
मेरी नि:शक्तता...

रविवार, 24 फ़रवरी 2008
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
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