आंसू का एक कतरा मेरी आँख से बह आया...
उसकी आँखों में मैंने देखा एक सपना था,
अब कैसे कह दू की वो मेरा

ऐसा लगता है कि बारिशों में पतंगे उड़ा रहा हूँ,
अपनी ही सोच में कुछ अनकहे रिश्ते निभा रहा हूँ...
मासूम चेहरा पढने में ज़रा सी भूल हुई,
वक़्त ने करवट ली, ज़िन्दगी यादो कि धूल हुई...
बात उससे करने का ख्वाब मेरा अधूरा रह गया,
दर्द उसकी ना का अब मैं पूरा सह गया...
गुनहगार तो बन चुका, इज़हार करके,
मुन्तजिर बना रहूँगा, अब इंतज़ार करके...